मैं एक मासूम सा बच्चा हूँ….
मैं एक मासूम सा बच्चा हूँ,
अम्मी अब्बू के लिए सबसे अच्छा हूं
जानता नहीं इस्लाम और कुरान की बातें
मगर फिर भी सच्चा हूँ,
मैं एक मासूम सा बच्चा हूँ।
आज सुबह अब्बू के साथ मस्जिद में,
पढी थी नमाज मैंने ,
नन्हे हाथ उठाकर खुदा का सजदा किया था मैंने
दुआ माँगती अम्मी ने हँसते हुए ,
रुखसत किया था स्कूल के लिए।
नहीं जानती थी बिछड़ जाएगा लाडला
हमेशा के लिए
मैं तालीम ले ही रहा था,
कि अचानक कुछ लोग आए,
चिल्लाने लगे जोर-जोर से
डर कर देखा जो उनेह गौर से
लगे अब्बू और चाचाजान की तरह
बहुत अपने से
मगर उनकी आंखों में न प्यार था न दुलार
हाथ में बन्दूके थीं ख़ून की प्यासऔर लबों पर गालियां बेशुमार
ये नहीं हो सकते अब्बू या चचा जान
वो तो हम पर छड़कते हैं अपनी जान
फिर ये कौन हैं?
कहां से आए हैं?
ये आदमी हैं या?
मौत के साए हैं?
मुझे डर लग रहा था बहुत
मैं खौफ से सहमा हुआ था बहुत.
वो हम पर गोली चला रहे थे .
जैसे कोई कहर बरपा रहे थे
अगर वो सो रहा है,
तो उसकी आँखे खुली क्यो है?
भाईजान भाईजान कहकर,
उठा रहा हूँ उसे ,
पर वह कुछ बोलता क्यों नहीं है।अरे! मुझे अचानक इतना दर्द क्यों हो रहा है?
सब कुछ धुंधला धुंधला सा क्यों हो रहा है ,अब्बू आप कहाँ हो?
अम्मी कहाँ हो आप?
जवाब क्यों नहीं देते
क्यों खामोश हैं आप?
अब्बू अब से मैं रोज नमाज पढूंगा,
अम्मी को बिलकुल तंग नहीं करूंगा
आप जैसा कहेंगे वैसा करूंगा ,मुझे डर लग रहा है,
मुझे बहुत डर लग रहा है,
ख़ुदाया मुझे यहाँ से ले जाओ,
अब्बू – अम्मी यहाँ से ले जाओ मुझे ।
मेरा हाथ रंगा है लाल रंग में,
दोस्त का कहना है सना है ख़ून में ,
मगर ये कैसे हो सकता है
बिना चोट के
ये खून में सना कैसे हो सकता है ।
इतना दर्द क्यों हो रहा है?
पोर पोर से दर्द रिस रहा है
कोई चीज नुकीली सी ,
मेरी छाती में धंसी है,
नन्ही सी जान आफ़त में फंसी है
आंखों में जलन है
जिस्म में शोलों की तपन है
दोस्त कहता है ,मुझे गोली लगी है
मोहब्बत पर नफ़रत की बोली लगी है
पर ये कैसे हो सकता है? यकीं नहीं होता
कोई बच्चे को भी यूं मार सकता है
यकीं नहीं होता
जानता नहीं इस्लाम और कुरान की बातें
फिर भी समझता हूं नफ़रत की घातें
एक मासूम सा बच्चा हूँ।
तजुर्बे और समझ से कच्चा हूं
मगर दिल से सच्चा हूं .