‘कचरे में बच्ची’ एक अमानवीय कृत्य, कब होगा इसका अंत..

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ये दिल दहला देने वाली घटना लेबनान के त्रिपोली शहर की है और मानवता को शर्मसार करने वाली . किसी ने लोकलाज या फिर अन्य किसी कारण से अपनी नवजात बच्ची को पन्नी में लपेट कर कचरे के ढेर में फेंक दिया था

जहाँ से इंसान के सबसे वफादार दोस्त एक कुत्ते ने उस बच्ची को उठाया और एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया . बच्ची के रोने कि अवाज़ सुनकर किसी राहगीर ने उसे त्रिपोली के सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया . लाल चकत्तों , खरोंच और चोट से घायल बच्ची का अस्पताल में इलाज जारी है . इस तरह की घटनाएँ हमारे देश में भी अनेक बार दर्ज की गयी हैं और ये कार्य हैवानियत की पराकाष्ठा है .

बच्चो को हम भगवान् का रूप मानते हैं और बच्चे निष्पाप और निष्कलंक होते हैं जीवन में वो भगवान् की नेमत के रूप में आते हैं ये अलग बात है बड़े होकर वो कैसे निकलते हैं लेकिन अपने शिशु रूप में उनसे ज्यादा मासूम कौन होगा .

दुनिया में अनेक निःसंतान दम्पति हैं जिनका जीवन संतान के बिना अधूरा है . कितने ही लोग जाने कितनी तपस्या , उपवास ,इबादत और मन्नत मांगते हैं संतान प्राप्ति के लिए . जिसके आने से जीवन पूर्ण होता है , जिसकी किलकारियां सुन मन आल्हादित होता है और जिसकी बाल लीलाएं देख लगता है दुनिया की सारी दौलतें मिल गयीं .

  • स्त्री पुरुष के प्रेम का फल है संतान . दुनिया अविवाहित जोड़े से उत्पन्न संतान को उपेक्षा से देखती है और इसका सारा दंड और दुःख पुरुष के बदले स्त्री को झेलना पड़ता है . पुरुष जब ऐसे संबंधों में विवाह से इनकार कर देता है तो स्त्री के लिए जीवन कांटो भरी राह बन जाता है .
  • उसके चरित्र पर लांछन लगने लगते हैं .दुनिया उसे तरह-तरह के अशोभनीय विशेषणों से संबोधित करने लगती है . पुरुष तो अपना बचाव कर लेता है लेकिन स्त्री समाज के तीर और तानों का निशाना बन जाती है . उसका जीना दूभर हो जाता है. वो समाज जो अभी भी बहुत परम्परावादी है , रूढ़ियों और संकीर्णताओं में आबद्ध है , जहाँ विवाहपूर्व संतान का जन्म घोर नैतिक पतन का परिचायक हो और एक परम दंडनीय अपराध हो वहां शायद एक स्त्री को अपने जीवन को संकट में डालने की बजाय इस तरह का रास्ता चुनना अधिक सुरक्षित लगता है .
  • ऐसी घटनाएँ हमारे देश में भी अनेक बार दर्ज हो चुकी हैं . और माता के लिए लोक लाज का खामियाजा किसी नवजात शिशु को भुगतना पड़ा है हालांकि विगत दिनों माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में ये टिपण्णी की थी कि माता पिता नाजायज़ हो सकते हैं लेकिन बच्चे नाजायज़ नहीं हो सकते . ये टिपण्णी समाज को राह दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है
  • भारत में तो लम्बे समय से कन्या भ्रूण को बचाने के लिए अनेक संस्थाएं काम कर रही हैं
  • भारत में कन्या शिशुओं को बचाने के लिए गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच को कानून के तहत अपराध घोषित किया है जिसके उलंघन के बदले कठोर दंड का प्रावधान किया गया है .
  • संतान चाहे बालक हो या बालिका उसे प्रेम से अपनाएँ , भरपूर दुलार दें .बच्चों का स्थान उनका घर है , स्कूल है कूड़े का ढेर नहीं .

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