लघु लेख—डा.ऋषु छिंदवाड़ा (म.प्र.)
हमारे ऋषि-मुनियों ने साल भर प्रकृति और मोसम के सापेक्ष व्रत-त्योहारों का लगातार एक ऐसा शानदार ताना-बाना तैयार किया है। जिसपर सम्पूर्ण चराचर संसार के समस्त आयामों का परिवर्धन- संवर्धन सतत् रूप से होता रहता है। इस उत्सव प्रियता में सामाजिक जीवन के लिए सार्थक मनोरंजन और ज्ञान-विज्ञान तो समाहित होता ही है।


सबसे बड़ी बात उन तीज-त्योहारों में स्वास्थ्य, आर्थिक,सामाजिक , मनोवैज्ञानिक,आध्यात्मिक, व्यवहारिक,व्यापारिक और सुरक्षा संतुलन के सूत्र, समग्र रूप से समाहित होते है i इन तीज-त्योहारों में पशु-पक्षी, पेड़-पौधों का सहभागिता इस तरह से होती है कि पर्यावरण संतुलन,जैव विविधता और जैव संरक्षण स्वस्फूर्त होता रहता है।
‘ भारतीय समाज में व्याप्त तीज-त्योहार और उत्सव- प्रियता के मायने’
कुल मिलाकर ये तीज-त्योहार,ये उत्सव प्रियता आपसी संबंधों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उन्हें मर्यादित,सुदृढ़ और परिष्कृत करते हैं। ये अद्भुत क्रम निर्बाध रूप से आगे भी चलता रहेगा। ऐसी हम ईश्वर से कामना करते हैं।
–डा.ऋषु छिंदवाड़ा (म.प्र.)
8421485353