National Girl Child Day 2025 राष्ट्रीय बालिका दिवस, कैसे सुरक्षित हो बच्चियों का भविष्य

Spread the love

fourthpillars cover page

भारत में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। यह दिन समाज में बालिकाओं के अधिकार, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। आइए जानते हैं कि बालिका दिवस मनाने की जरूरत कब और क्यों महसूस की गई। इस लेख में ये भी जानिए कि पहली बार कब और कैसे भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया और साल 2025 की थीम क्या है। राष्ट्रीय बालिका दिवस की इस साल की थीम है, ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों का सशक्तीकरण’। जाहिर है कि जब तक बच्चियां सशक्त नहीं होंगी तक तक उनका भविष्य सुनहरा नहीं हो सकता। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएचएफएस 2019-21) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 18 से 24 आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह हो जाता है।

हर साल 24 जनवरी को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य बच्चियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण में लैंगिक भेदभाव को खत्म करते हुए उन्हें बराबरी के अवसर मुहैया कराना है। राष्ट्रीय बालिका दिवस की इस साल की थीम है, ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों का सशक्तीकरण’

जाहिर है कि जब तक बच्चियां सशक्त नहीं होंगी तक तक उनका भविष्य सुनहरा नहीं हो सकता। लेकिन सशक्तीकरण के सपने को पूरा करने के लिए हमें सबसे पहले बच्चियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों की पहचान करनी होगी और उसके बाद ही इसके निदान के उपायों को मिली सफलता का आकलन किया जा सकता है। अगर चुनौतियों की बात करें तो देश इस बात से अभी भी बेखबर है कि बच्चियों के सामने बाल-विवाह एक बड़ी समस्या है जो उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और आर्थिक स्वालंबन के रास्ते बंद कर देता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएचएफएस 2019-21) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 18 से 24 आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह हो जाता है।

दरअसल, पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा जैसे राज्यों में बाल विवाह की दर 40 प्रतिशत से भी अधिक है जबकि असम और झारखंड ज्यादा पीछे नहीं हैं। बाल-विवाह महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है। बाल-विवाह बच्चों से बलात्कार के अलावा कुछ भी नहीं है।

भारत के सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ वैवाहिक संबंधों में यौन संबंध बनाने को भी बलात्कार माना जाएगा। दूसरी सबसे बड़ी समस्या है बच्चियों को यौन शोषण और ट्रैफिकिंग का शिकार होने से बचाने की। ड्रग्स और हथियारों के बाद मानव ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। मासूम बच्चियों को प्रेमजाल में फंसा कर, उन्हें शादी का झांसा देकर या उनके परिजनों को इन बच्चियों को नौकरी दिलाने का सब्जबाग दिखाकर बड़े शहरों में लाया जाता है। इन बच्चियों को या तो बेच दिया जाता है या उन्हें वेश्यावृत्ति या बंधुआ मजदूरी में धकेल दिया जाता है।

प्लेसमेंट एजेंसियां भी रोजगार दिलाने की आड़ में इन ट्रैफिकिंग गिरोहों की मददगार हो गई हैं। तीसरी सबसे बड़ी समस्या है बच्चियों का यौन शोषण रोकना। यौन शोषण की शिकार बच्चियों के प्रति अभी भी समाज में अपेक्षित संवेदनशीलता की कमी है। थाने में मामला दर्ज करने में होने वाली परेशानी और फिर अदालतों में तारीख पर तारीख से पीड़ित बच्चियां टूट जाती हैं। समाज भी अक्सर उन्हीं पर उंगली उठाता है। इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयासों में भी काफी हद तक कमी है। इसके अलावा ऑनलाइन यौन शोषण एक महामारी बन कर उभरा है।

बच्चों का ऑनलाइन यौन शोषण एक ऐसा अपराध है जिसे राष्ट्रों की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि आंकड़ों से इस अपराध की भयावहता का पता नहीं चलता, क्योंकि इनमें से ज्यादातर मामलों की जानकारी बाहर नहीं आ पाती।

लेकिन मानना होगा कि पिछले कुछ वर्षों में इन मोर्चों पर भारत में जितने कदम उठाए गए हैं, उतने किसी और देश में नहीं। खास तौर से बीते साल कई न्यायिक फैसले ऐसे आए और सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। देश में बाल-विवाह, बाल श्रम, बच्चों की ट्रैफिकिंग और ऑनलाइन यौन शोषण के खिलाफ देश के 26 राज्यों के 416 जिलों में काम कर रहे 250 गैरसरकारी संगठनों के नेटवर्क ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ के सहयोगियों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर न सिर्फ ऐतिहासिक फैसला सुनाया बल्कि इसकी रोकथाम के लिए एक समग्र कार्ययोजना की जरूरत पर भी जोर दिया।

चुनांचे एक रिपोर्ट बताती है कि अगर इनमें एक भी नया मामला नहीं जोड़ा जाए तब भी इन लंबित मामलों के निपटारे में अनुमानित तीन साल का समय लगेगा। अगर ये सभी लंबित मामले निपटाने हैं तो देश में तत्काल एक हजार नई विशेष त्वरित अदालतों के गठन के अलावा यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि मौजूदा सभी 1023 विशेष अदालतों में कामकाज सुचारू जारी रहे। फिलहाल सिर्फ 755 अदालतों में ही कामकाज हो रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *