आज फिल्म जगत के बेहद सुरीले , अमर गायक रफ़ी साहब का जन्म दिन है . वो जितने महान गायक थे उतने ही महान व्यक्ति थे . बहुत धीमे बोलने वाले , बेहद विनम्र , हंसमुख और एक मददगार इंसान .
24 दिसंबर 1924 को पंजाब के अमृतसर ज़िले के मजीठिया के पास स्थित गाँव कोटला सुल्तान सिंह में , अल्लाह रखी और हाजी अली मोहम्मद के घर उनका जन्म हुआ था . ये एक मुस्लिम जाट परिवार था .रफ़ी साहब के बचपन का नाम था फीको . बचपन से ही गायन में उनकी रूचि थी . उन्होंने उस्ताद अब्दुल वहीद ख़ान , पंडित जीवन लाल मट्टू और फ़िरोज़ निज़ामी से संगीत की बारीकियां सीखीं .
1941 में रफ़ी साहब को पंजाबी फिल्म “गुल बलोच” में ज़ीनत बेगम के साथ गाने का मौक़ा मिला , जिसके संगीतकार थे श्याम सुन्दर . ये फ़िल्म 1944 में रिलीज़ हुई थी . गाने के बोल थे “सोणिये नी हीरिये नी” लगभग इसी बरस रफ़ी साहब को लाहौर रेडियो से गाने का निमंत्रण मिला था .
शायर तनवीर नक़वी ने उन्हें उस दौर के मशहूर फ़िल्म निर्माता ए.आर.कारदार ( अब्दुर रशीद कारदार ) , फिल्म निर्देशक महबूब ख़ान और अभिनेता नज़ीर से मिलवाने में मदद की . उन दिनों फ़िल्म “गुल बलोच” के संगीतकार श्याम सुन्दर भी मुम्बई में ही थे जो फ़िल्म “गाँव की गोरी” का संगीत तैयार कर रहे थे उन्होंने जी.एम.दुर्रानी के साथ रफ़ी साहब को एक गीत गाने का अवसर दिया जिसके बोल थे “अजी दिल हो क़ाबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी” इस गीत को रफ़ी साहब का “पहला हिन्दी फ़िल्म गीत” माना जाता है .
संगीतकार नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्होंने अपना पहला गीत श्याम कुमार , अल्लाउद्दीन और सथियों के साथ गाया था जिसके बोल थे “हिंदुस्तान के हम हैं हिंदुस्तान हमारा” ,फिल्म थी ए .आर .कारदार द्वारा 1944 में निर्मित फ़िल्म “पहले आप” 1945 में आयी फ़िल्म लैला मजनू और 1947 में आयी फिल्म जुगनू में उन्होंने छोटी सी भूमिकाएं भी निभाई थीं. रफ़ी साहब ने 11 भाषाओँ में 310 गीत गाये और उनके 328 ग़ैर फ़िल्मी गीत हैं .
फ़िल्मों के नायकों से लेकर चरित्र अभिनेताओं तक रफ़ी साहब ने अनगिनत कलाकारों के लिए पार्श्व गायन किया और बाकमाल किया . परदे पर वो चाहे भारत भूषण ,राजेन्द्र कुमार ,धर्मेन्द्र ,सुनील दत्त , देवआनंद , शम्मी कपूर , गुरुदत्त ,शशिकपूर ,जीतेंद्र ,विश्वजीत , जॉयमुखर्जी , फ़िरोज़ ख़ान , संजय ख़ान या जॉनी वॉकर हों रफ़ी साहब का अंदाज़ ऐसा था मानो ये सभी अभिनेता ख़ुद गा रहे हों .
उनकी आवाज़ कलाकार के मैनेरिज़्म और उसकी बॉडी लेंग्वेज को आत्मसात का लेती थी जो उनके पार्श्व गायन की बहुत बड़ी ख़ूबी थी .
1960 में उन्हें फ़िल्म चौदहवीं का चाँद फ़िल्म के शीर्षक गीत के लिए , 1961 में फ़िल्म ससुराल के गीत तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे के लिए ,1964 में फ़िल्म दोस्ती के गीत चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे के लिए ,1966 में फ़िल्म सूरज के गीत बहारो फूल बरसाओ के लिए ,1968 में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत दिल के झरोखे में तुझ को बिठाकर के लिए और 1977 में फ़िल्म हम किसी से कम नहीं के गीत क्या हुआ तेरा वादा के लिए “सर्व श्रेष्ठ गायक” का फ़िल्म फ़ेअर पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया था . फ़िल्म हम किसी से कम नहीं के गीत के लिए उन्हें सर्व श्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था .
भारत की आज़ादी की पहली सालगिरह पर 1948 में उन्हें दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने रजत पदक देकर सम्मानित किया था और 1967 में मोहम्मद रफ़ी साहब को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री के नागरिक अलंकरण से सम्मानित किया गया था . रफ़ी साहब की नशीली , माधुर्य से भरी आवाज़ के दिवाने पूरी दुनिया में हैं .
मोहम्मद रफ़ी जैसा कलाकार अत्यंत दुर्लभ है , अब ऐसा कलाकार न तो है और न होगा . उनके लिए संगीतकार नौशाद ने क्या ख़ूब कहा है…
मेरी सरगम में भी तेरा ज़िक्र है
मेरे गीतों में भी तेरी आवाज़ है
गूंजते हैं तेरे नग़मों से अमीरी के महल
झोपड़ी में भी ग़रीबों के तेरी आवाज़ है
1973 में एक फिल्म आयी थी जिसका एक गीत महान गायक मोहम्मद रफ़ी साहब ने संगीतकार गणेश के निर्देशन में मानो अपने लिए ही गाया था . गीत के बोल थे
दिल का सूना साज़ तराना ढूंढेगा , मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा . रफ़ी साहब 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत हुए थे . बेशक़ जिस्मानी तौर पर लेकिन अपने कालजयी गीतों और आवाज़ के रूप में आज भी हमारे बीच हैं और ता क़यामत तक हमारे साथ रहेंगे .