मशहूर व मारूफ़ कवि और चित्रकार इमरोज उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. कुछ दिन पहले उन्हें हॉस्पिटल में भी एडमिट कराया गया था. जिसके बाद वो ठीक होकर घर भी आ गए थे. पर शुक्रवार को उन्होंने मुंबई के कांदिवली में स्थित उनके घर पर अंतिम सांस ली.
मशहूर कवि और चित्रकार इमरोज को लेकर एक बेहद दुखद खबर सामने आई है. इमरोज अब हमारे बीच नहीं रहे हैं. 97 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है.
इमरोज उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. कुछ दिन पहले उन्हें हॉस्पिटल में भी एडमिट कराया गया था. जिसके बाद वो ठीक होकर घर भी आ गए थे. पर शुक्रवार को उन्होंने मुंबई के कांदिवली में स्थित उनके घर पर अंतिम सांस ली.
अमृता और इमरोज की प्रेम कहानी चंद स्पेशल लव स्टोरीज में से एक है. दोनों 40 साल तक एक-दूसरे के साथ रहे, लेकिन कभी अपने रिश्ते को शादी के बंधन में बांधने की कोशिश नहीं की अमृता उन्हें प्यार से जीत कहकर बुलाती थीं. अमृता की जिंदगी के अंतिम दिनों इमरोज साए की तरह उनके साथ नजर आते थे.
अमृता प्रीतम और इमरोज की मोहब्बत बेहद खूबसूरत रही और रहती ज़िन्दगी क़ायम रहेगी. प्यार अमर होता है इसलिए था लिखना सही नहीं. खैर जब अमृता बीमार थी तब ये कविता इमरोज के लिए लिखी थी. आज इमरोज भी अमृता के पास चले गए. लेकिन उनकी लिखी ये कविता हमेशा ताजिंदगी रहेगी.
मैं तैनू फ़िर मिलांगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे कैनवास पर उतरुँगी
या तेरे कैनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगों में घुलती रहूँगी
या रंगों की बाँहों में बैठ कर
तेरे कैनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रूर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं