सार्थक सेहत टॉक की बेहतर सलाह अच्छी सेहत के बिना जीवन महत्वहीन

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स्वास्थ्य एक बड़ी चुनौती किसी भी देश के लिये,बढ़ती आबादी और चिकित्सा जगत में आधुनिक अनुसंधान से जटिल से जटिल,बीमारियों का उपचार अब संभव है और इसके चलते रोग ग्रस्त लोगो की जनसंख्या में पिछले कुछ दशक से तेज़ी से वृद्धि हुई है। लेकिन ये न भूलिए आपकी ज़िन्दगी में ख़ुशी और मुस्कान सबसे बड़ा रामबाण है.

मौजूदा हालात को अगर ध्यान से देखें तो शायद ही कोई ऐसा घर, हमारे देश में हो जहाँ कोई बिमार व्यक्ति ना हो ! बिमार व्यक्ति को हम दो श्रेणी में बाँट सकते है एक जो OPD स्तर पर उपचार करा रहे है और दूसरा जो अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करा रहे है। अब चाहे रोगी भर्ती हो या ओपीडी पर दिखा रहे हो दोनों जगह पर देखभाल करने वाले की अहम भूमिका है।

अधिकांश बिमारी २ से ३ सप्ताह में ठीक हो जाती है फिर चाहे वो ओपीडी मरीज़ हो या भर्ती मरीज़, परंतु कुछ बिमारी जैसे कैंसर, हृदय संबंधित, मानसिक रोग, त्वचा रोग,जोड़ -हड्डी रोग, नशा से हुई बीमारियाँ,नस-स्नायु संबंधित रोगो के उपचार में समय सामान्य से अधिक लगता है।

बैंकों भी रोग को ठीक करने में एक चिकित्सक,पैथोलॉजी जाँच या अन्य जाँच,दवाईया,या कोई भी चिकित्सकीय प्रक्रिया की जितनी आवश्यकता होती है,उतना ही महत्वपूर्ण भूमिका एक देखभालकर्ता की होती है किसी भी बिमारी या बिमार व्यक्ति को स्वस्थ करने में उसका किरदार अहम है ।

ऐसे रोगी में कई बार मरीज़ को बार बार अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। ऐसे जगह पर जहाँ रोग का इलाज धीरे से हो रहा है या जहाँ बार बार भर्ती करना पड़ रहा हो वहाँ पर देखभाल कर्ता अपने ही स्वास्थ के साथ लापरवाही करते नज़र आते है । जैसे भरपूर नींद ना लेना, खानपान में ऊँचनीच होना, व्यर्थ की चिन्ता करना अटकलें लगाना, जिसके कारण इनके मानसिक दशा में बदलाव आना जैसे चिड़चिड़ापन, अस्पताल कर्मियों से बहस हो जाना, अत्यधिक थकान लगना, पेट का गड़बड़ होना इत्यादि।

ऐसे में इस अहम ज़िम्मेदारी निभाने वाले के संदर्भ में बात करना आज के माहौल के लिये अति आवश्यक हो चुका है।क्योंकि देखभालकर्ता का स्वभाव का असर रोगी के स्वास्थ पर असर डालता है।

देखभालकर्ता को अपने रोगी के समक्ष बोलने से पहले अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिये, आप कितना भी परेशान क्यों ना हो मरीज़ के सामने चुभने वाली बाते या घर के समस्याओं के बारे में ज़िक्र ना करे,अपना बॉडी लैंग्वेज सही रखे, इन सब का असर मरीज़ के ठीक होने पर पड़ता है । ऐसे में ज़रूरत है की देखभाल कर्ता सर्वप्रथम रोग के बारे में अच्छे से समझ लेवे ताकि उसके अनुरूप वो अपना दिनचर्या को सही से बना सके। ऐसे समय पर स्वयं का ध्यान देना स्वार्थी होने के अपराध बोध को जगाता है हो कि सरासर गलत है ।

आप स्वस्थ रहेंगे तभी तो बाक़ी काम भी सरलता से होगा। तो समय समय पर पानी पिजिये खाना नाश्ता को अनावश्यक ना टालें ।

बेवजह बहुत सारे सवाल पूछने से बचे क्योंकि दवाईयो का असर आने में समय लगता है जो चल रहा हो उस पर पूर्ण रूप से विश्वास रखें। हाँ अगर कहीं से संदेह लगे तो आप दूसरे डॉ से सलाह लेने से na चुके।

रोग की गंभीरता को देखते हुए देखभाल कर्ता अपने हिसाब से देखने आने वाले को व्यवस्थित कर सकते है जिससे अस्पताल में कोई अनावश्यक कोई भीड़ इक्कठा ना। हो। कुछ रोग ऐसे होते है जिसने ना केवल रोगी अपितु पूरे परिवार को संयम रखना पड़ता है उदाहरण के लिये अगर घर पर किसी को मधुमेह/डायबिटीज का पता लगा हो तो ना केवल मरीज़ को बल्कि पूरे परिवार को कुछ समय के लिये मीठा खाना बंद कर देना चाहिये, आवश्यक ना हो तो घर पर मिठाई ना लाये, इस से मरीज़ का मनोबल बढ़ेगा और इस सकारात्मक आचरण से मरीज़ को बिना किसी दबाव से सहज भाव से मीठा छोड़ने में आसानी होगी।

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