ग़ज़ल- एक नाज़ुक कोशिश

Spread the love

बदला-बदला आपका व्यवहार क्यूँ है,
प्यार है तो होंठ पर इंकार क्यूँ है।

प्यार की गलियों में घूमो साथ मेरे,
ये झिझक-सी नाज़नी बेकार क्यूँ है।

आ गया नव-वर्ष लेकर कामनाएं,
आपका सिमटा हुआ इज़हार क्यूँ है।

मैं हूँ सागर इक नदी-सी आप में भी,
फिर मिलन अपना हुआ दुश्वार क्यूँ है।

इस तरफ तो आ गया मधुमास कब का,
एक तन्हाई मगर उस पार क्यूँ है।

राजेश जैन ‘राही’, रायपुर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *