“कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी, सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी“
महात्मा गांधी ने कहा था- बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो और बुरा मत देखो. गांधी जी की इस वक्तवय का बिहार सरकार अक्षरशः पालन कर रही है. राज्य की बदहाल स्वास्थ्य निज़ाम का एक जीता जागता मिसाल आपके सामने है, एक पिता अपने लाडले के शव को कंधे पर बैठाकर मदद के लिए यहाँ से वहां बेबस फिरता रहा, इस उम्मीद से कि, सवास्थ विभाग से उसकी मदद करेगी
लेकिन लाख गुहार लगने के बावजूद, उसे किसी से कोई मदद नही मिल पाई, तो आख़िरकार वह हारकर अपने बेटे को दोपहिया वहां से घर ले गया, बेशक यह घटना पुरानी है मगर ‘दर्दनाक सच्चाई की रिप्लिका’
यह वाक्या गांव, शहर, नही बल्कि पुरे भारत की छवि पर गहरे सवालिया निशान छोडती है. यह तस्वीर जहाँ कही भी देखी गई इंसानियत को ज़ार ज़ार कर गई.
क्या अब प्रशासन, ऐसी घटना न हो इसके लिए ठोस कदम उठा रहा है… पूरा मामला बिहार समस्तीपुर सदर अस्पताल का है जहां प्रबंधन की संवेदनहीनता से भरी ये तस्वीर देखने मिली है। जहां एक बच्चे की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन द्वारा मृत बच्चे के परिजन को शव वाहन [Hearse] तक, उपलब्ध नहीं कराया गया। पिता अपने बेटे के शव को इमरजेंसी वार्ड से कंधे पर उठाकर बाहर निकला और बाइक के बीच रखकर रोता बिलखता निकल पडा।
नीति आयोग की रिपोर्ट में लगातार बिहार के फिसड्डी होने के सवाल पर मुख्यमंत्री -‘पता नहीं’ कहकर अपना मुंह बंद कर लेते हैं और बुरा बोलने से बच जाते हैं. लेकिन हम बुरा देखेंगे और आपको दिखाएंगे भी क्योंकि आंखें बंद कर लेने से बुराइयां खत्म नहीं हो जाती. आज हम आपको बिहार में पब्लिक हेल्थ सिस्टम की कुछ सच्चाई से रूबरू करने की कोशिश करेंगे .
- रिपोर्ट के अनुसार देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं
- 16 वर्षों के इनके कार्यकाल में चमकी बुखार, कोरोना और इलाज के अभाव में प्रतिवर्ष हजारों लोग मरते हैं।
- पिछले साल खुद बिहार सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के 75 फीसदी पद खाली पड़े हुए हैं. सरकार के मुताबिक बिहार के अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल 11,645 पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 2,877 पद ही भरे हुए हैं. World Health Organization के मुताबिक प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए…?
- भारत में लगभग 1500 लोगों पर एक डॉक्टर मौजूद है. लेकिन बिहार में तो हालात भयावह हैं, यहां 40 हजार से ज्यादा की आबादी पर एक सरकारी डॉक्टर उपलब्ध है.
- अब खबर ये है कि बिहार का अपना खुद का ‘नीति आयोग’ होगा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार सरकार ने नीति आयोग की तर्ज पर जिलों की रैंकिंग करने का फैसला लिया है
- 17 प्रमुख मानकों पर जिलों की क्या उपलब्धि रही है, इसके आधार पर रैंकिंग होगी. ताकि राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मानकों पर बिहार की उपलब्धियों को और बेहतर किया जा सके.
- जून, 2021 में ही नीति आयोग के Sustainable Development Goals इंडेक्स में बिहार सबसे निचले पायदान पर था.