‘आइये आपको बताते हैं रोजा रखने या ‘ड्राई फास्टिंग’ के वैज्ञानिक फायदे क्या हैं, जो हमें सभी रोगों से बचाता है’ दुनियाभर में प्रसिद्ध लाइफस्टाइल कोच ल्यूक कौटिन्हो के अनुसार ‘ड्राई फास्टिंग’ स्वस्थ रहने का एक बेहतरीन तरीका है। ड्राई फास्टिंग को हम हिंदी में ‘निर्जला उपवास’ भी कह सकते हैं, यानी एक ऐसा उपवास जिसमें व्यक्ति खाना के साथ-साथ पानी भी छोड़ देता है। पश्चिमी देशों के लिए ड्राई फास्टिंग नया ट्रेंड हो सकता है मगर हमारे देश में हजारों सालों से इसकी प्रैक्टिस होती रही है।
मुस्लिम धर्म में महीने भर तक रोजा के रूप में बिना पानी पिए उपवास रखने की परंपरा रही है।
ल्यूक कौटिन्हो बताते हैं कि ड्राई फास्टिंग के द्वारा आप बड़ी से बड़ी बीमारी को ठीक करने में शरीर की मदद कर सकते हैं।
इससे आपका पूरा शरीर और सिस्टम साफ हो जाता है। इससे वजन घटता है, इम्यूनिटी बढ़ती है और उम्र को रोकने (एंटी-एजिंग) में भी मददगार है।
इतना ही नहीं, ड्राई फास्टिंग यानी रोजा रखने से आप कैंसर, ट्यूमर, डायबिटीज, हार्ट के रोग, ब्लड प्रेशर आदि जैसी गंभीर बीमारियों से भी अपने शरीर को लड़ने में मदद कर सकते हैं।
हमारे शरीर की सारी गंदगी निकल जाती है। चाहे आप पानी पीकर उपवास करें या फिर बिना पानी पिए यानी ड्राई फास्टिंग करें। पानी पीकर उपवास करने से आपकी किडनी, लिवर और आंतों में जमा गंदगी पानी के साथ निकल जाती है। लेकिन फिर भी बहुत सारी गंदगियां सेल्स के अंदर रह जाती है।
वहीं, जब आप ड्राई फास्टिंग करते हैं यानी पानी भी नहीं पीते हैं, तो आपके सेल्स अपने आप ही अपने भीतर की गंदगी को बर्न करने लगते हैं। इससे बॉडी की ज्यादा बेहतर सफाई हो जाती है। इसीलिए रोजा से हैं कई शारीरिक फायदे, जिस्म की अंदरूनी बीमारियों से निजात मिलता है, और रूहानी ताकत पैदा होती है
भूखे रहने का एहसास हमें इंसानियत की सीख भी देता है। रोजा जिस्म की अंदरूनी बीमारियों का खात्मा करने का बेहतरीन जरिया है। आज की भाग दौड़ की जिंदगी में इंसान को अपने अपने मजहबी तरीके से रोजा या उपवास रखना बेहद जरूरी है। रोजे का एक साइंटिफिक नजरिया है। पहले दो रोजे से ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है।
एक रिसर्च में साबित हुआ है
कुछ लोगों की त्वचा मुलायम और चिकनी हो जाती है, जिस्म भूख का आदी होना शुरू हो जाता है, और इस तरह साल भर मसरूफ रहने वाला हाजमा सिस्टम ठीक रहता है, खून के सफ़ेद जरसूम और इम्युनिटी में बढ़ोतरी होनी शुरू हो जाती है, बीस रोजों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं। तवज्जो और सोच में सलाहियत बढ़ जाती है।
बेशक बदन और रूह बर्दाश्त करने की हर हद सीख जाता है और ज़िन्दगी को भरपूर अंदाज़ से जीने के काबिल हो जाता है। कहने का मतलब है की दुनियावी, जिस्मानी, और रूहानी फ़ायदा हैं रोज़ा रखने के, जो हमारी आखिऱत [अंत] भी संवारने का बेहतरीन इंतज़ाम है रोज़ा । माह-ए-रमजान में पांचों वक्त नियमित नमाजें अदा करने से जिस्मानी व दिमागी (शारीरिक व मानसिक) शक्ति में वृद्धि होती है।
नफ्स (इंद्रियों) पर काबू पाने की सलाहियत [quality] में मजबूती आ जाती है। रोज़ा बुराइयों को कोसों दूर भगाने में मदद करती है। रोज़े की हर मजहब में अपनी खास अहमियत होती है। इससे जिस्म में पलने वाले परजीवी का खात्मा होता है। रोज़े से बर्दाश्त व सहनशक्ति की क्षमता बढ़ती है। परहेजगारी में इजाफा होता है। और सबसे ज़रूरी बात हम अपने माइंड में कंट्रोल पा लेते हैं ।