रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है। मौत की संख्या 1000 में होने का अनुमान लगाया जा रहा है, बताया जा रहा है कि कई सौ लोग घायल हैं। हजारों लोगों को बेघर होना पड़ रहा है। कई देशों के नागरिक भी यहां फंसे हुए हैं। इस युद्ध की वजह से यूरोप में विश्वयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं। इस समय पूरी दुनिया की नजरें इन दोनों देशों पर टिकी हुई हैं। क्या आप जानते हैं सोवियत संघ के जमाने से एक दूसरे के घनिष्ट मित्र रहे इन दोनों देशों में आखिर विवाद कैसे हो गया, ये हम आपको आसान शब्दों में समझते है
रूस और यूक्रेन के बीच विवाद की कई वजहें हैं,
लेकिन इसमें सबसे बड़ी वजह नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) को माना जाता है। जिसकी वजह से एक युद्ध शुरू हुआ है।
1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निबटने के लिए अमेरिका ने नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया था। इस संगठन को russia को कांउटर करने के लिए बनाया गया था।
अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं।
यदि कोई देश नाटो देश पर हमला करता है तो वह हमला पूरे नाटो देश पर माना जाएगा, जिसका मुकबला सभी नाटो सदस्य देश एकजुट होकर उसका मुकाबला करते हैं।
यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन ये बात रूस को रास नहीं आ रही है। इसी वजह से विवाद जारी है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो उसके सैनिक रूस-यूक्रेन की सीमा पर डेरा जमा लेंगे। इस वजह से रूस को लगता है कि नाटो जैसे संगठन के सैनिक अगर उस सीमा पर आ जाते हैं तो उसके लिए समस्या हो सकती है।
रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे।
राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को लेकर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दवाब डाल रहे थे।
नाटो में 30 लाख से अधिक सैनिक हैं. जबकि रूस के पास सिर्फ 12 लाख सैनिक हैं। जिसकी वजह से रूस को खतरा महसूस होता है। इस वजह से रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को इसका सदस्य नहीं बनने देना चाहता है। रूस चाहता है कि नाटो उसे लिखित में आश्वासन दे कि वो यूक्रेन को नाटो में कभी शामिल नहीं करेंगे। इसके अलावा रूस का कहना है कि नाटो उन देशों को शामिल न करें, जो देश यूरोपीय संघ से अलग हुए हैं और नाटो इसे लिखित रूप में दे।
Russia ने 2014 में यूक्रेन का शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था।
दरअसल क्रीमिया में एक बंदरगाह है, जो रूस के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह ऐसा पोर्ट है जो रसिया को 12 मासिय समुद्र से कनेक्टिविटी देता है। एक विवाद की वजह यह भी है कि क्रीमिया में ज्यादातर लोग रसियन बोलने वाले हैं, जो रूस से अधिक लगाव रखते हैं। इस वजह से यूक्रेन डरा हुआ है कि रसिया उसके और भी क्षेत्र पर कब्जा कर सकता है, इसलिए वह नाटो में शामिल होना चाहता है।
रूस और यूरोप गैस पाइपलाइन विवाद भी एक वजह है। दरअसल, रूस इस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था। ये पाइपलाइन यूक्रेन से होकर जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता है। रूस हर साल करीब 33 बिलियन डॉर का भुगतान युक्रेन को कर रहा था। ये राशि युक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी थी ऐसे में रूस को लगता है कि अगर वे यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर कब्जा करते हैं तो उन्हें गैस पाइपलाइन भेजना आसन होगा।