31 अक्टूबर : राष्ट्रीय एकता दिवस

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4th पिल्लर्स डेस्क Raipur

हमारा देश विविध संस्कृतियों , मतावलंबियों का देश है और यही इसकी ख़ूबसूरती है. यहाँ नफ़रत के लिए कोई जगह नहीं है .
बशीर बद्र साहब का एक शेर है
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत

इस धरती की मिटटी में मुहब्बत घुली हुई है ,इसमें खुशबू है भाईचारे और आपसी प्रेम की . इस मिटटी के मिज़ाज में सहनशीलता है . जो भी यहाँ आया इस मिटटी के रंग में रंग गया . दुनिया में जहाँ-जहाँ भी जंग हुई है उसने नफ़रत के शोले ही भड़काए हैं , आपसी नफ़रत से दिलों में सिर्फ़ कड़वाहट ही पैदा होती है . ये धरा ऋषि मुनियों , साधु संतो और फ़क़ीरों की है जिनका दर्शन ही त्याग और प्रेम रहा है .जो लोग इन्सान को इन्सान से , धर्म या मज़हब के नाम पर लड़वाते हैं वो मनुष्यता के सबसे बड़े शत्रु हैं .

ये देश सबका है और इसके बेहतर निर्माण की ज़िम्मेदारी सबकी साझा है .नयी नस्लों के ज़ेहन को नफ़रत से भरने के बदले प्रेम से भरने की आवश्यकता है .

देश का हर समुदाय मूल्यवान है और मूल्यवान है देश की प्रगति में किया गया उसका योगदान . जब सबको यहीं रहना है तो क्यों न मुहब्बत से रहा जाए . मंदिर की घंटियों का गुंजार भी हो मस्जिद की अज़ान भी गूंजे और शबद का पवित्र स्वर भी ह्रदय को आल्हादित करे . सूरज की रौशनी , बारिश का पानी छतों के नाम और मज़हब नहीं पूछते , खेतों में फ़सलें किसी धर्म का नाम लेकर नहीं उगतीं . क़ुदरत अपनी नेमतें धर्म के नाम पर नहीं बांटती .ये तो सिर्फ़ इंसान है जो क़ुदरत के निज़ाम को भी बदल देना चाहता है .

बार-बार इतिहास के काले अध्यायों को पलटना , अतीत की स्मृतियों में जाकर नफ़रत लेकर लौटना समझदारी नहीं .

जाफ़र मलीहाबादी साहब ने फ़रमाया है
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो

दुनिया के हर इंसान की रगों में बहता ख़ून लाल है फिर चाहे उसका रंग-रूप या मज़हब चाहे जो हो . ये देश अलग अलग संस्कृतियों , धर्मावलम्बियों , भाषा भाषियों का देश है . ठीक उस चमन की तरह जिसमें तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं .हर एक का अपना विशिष्ट स्वरुप है ; सुगंध है . नफ़रत और अफ़वाह के कांटे इन फूलों को सिर्फ़ घायल करते हैं . नयी नस्ल को एक अच्छे माली की तरह बिना किसी भेदभाव के इस चमन को मुहब्बत के जल से सींचना होगा , मुहब्बत की ही खाद देनी होगी . नफ़रत की आंधी से ये ख़ूबसूरत बाग़ सिर्फ़ उजड़ेगा , आबाद नहीं होगा .

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