मौसम के चक्र में होने वाले बदलाव पर वैज्ञानिकों की लगातार नज़र है . पिछली एक सदी से जारी वैश्विक तापमान में वृद्धि का असर जलवायु परिवर्तन के रूप में महसूस किया जा रहा है। इस बदलाव का असर कृषि और प्रकृति की जैविक गतिविधियों पर , उसके जीव जगत पर पड़ रहा है . जंगलों के लगातार कटने , खनन हेतु किये जाने वाले विस्फ़ोट , औद्योगीकरण ,पहाड़ों को निर्माण हेतु काटने , शहरों के कंक्रीट के जंगल में बदलते चले जाने से तापमान में बहुत अंतर पड़ा है .
मौसमों में ये बदलाव एक दम से नहीं हुआ है बल्कि प्रकृति कई वर्ष पूर्व से हमें इस बदलाव की किसी न किसी रूप में चेतावनी दे रही थी . लेकिन विकास की अंधी और बेलगाम दौड़ में मनुष्य इस चेतावनी की अनदेखी करता रहा . लगातार बढ़ती आबादी के लिए संसाधनों का दोहन भी तेज़ी से बढ़ा है . एक तरफ कारखानों की चिमनियाँ धुआं उगल रही हैं तो दूसरी तरफ हमारे शहर ट्रैफ़िक के प्रदूषण से बेहाल हैं .
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक दल ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि , यदि दुनिया पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री अधिक गर्म हो जाएगी तो इस सदी के मध्य तक हर साल गर्मी की तीव्रता के कारण होने वाली मौतों में 4 गुना वृद्धि हो जाएगी .इस अध्ययन का आधार वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के अलावा , 52 विभिन्न अनुसंधान संस्थानों एवं संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेंसियों से सम्बद्ध 100 से अधिक विशेषज्ञों द्वारा जुटाए गए आंकड़े शामिल हैं .