राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. धर्मेन्द्र गहवई ने बताया कि मुख्य रूप से चार वायरस ए, बी, सी और ई इस बीमारी के कारक माने जाते हैं। इनमें से हेपेटाइटिस ए और ई कम गंभीर और आमतौर पर अल्पकालिक संक्रमण होते हैं। ज्यादातर मामलों में ये स्वतः ठीक हो जाते हैं। यह दूषित खाना खाने या दूषित जल पीने के कारण होता है। हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के अधिक गंभीर प्रकार हैं और ये लिवर में दीर्घकालिक (पुराना) संक्रमण पैदा करता है। हेपेटाइटिस बी या सी वायरस के संक्रमण से यकृत को गंभीर क्षति हो सकती है जो लिवर सिरोसिस से लिवर-फेलियर और कुछ मामलों में यकृत के कैंसर का कारण भी बन सकता है।
स्वास्थ्य विभाग ने नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत सभी शिशुओं और उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को हेपेटाइटिस-बी का टीका अवश्य लगवाने की अपील की है। हेपेटाइटिस का समय पर इलाज नहीं कराने से यह लिवर-फेलियर (Liver Failure) या लिवर कैंसर का कारण बनता है। हेपेटाइटिस एक संक्रामक बीमारी है जो लिवर (यकृत) में सूजन पैदाकर इसे नुकसान पहुंचाता है। अगर हेपेटाइटिस का उपचार समय पर नहीं कराया जाए तो यह घातक हो सकता है। राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के तहत प्रदेश में हेपेटाइटिस संक्रमण से होने वाली बीमारियों की निःशुल्क जांच और उपचार की व्यवस्था है। राज्य में उप स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक रैपिड डायग्नोस्टिक किट से इसकी जांच की सुविधा है। सभी जिला अस्पतालों और शासकीय मेडिकल कॉलेजों से संबंद्ध अस्पतालों में इसकी निःशुल्क जांच और उपचार किया जाता है।
डॉ. गहवई ने बताया कि हेपेटाइटिस बी और सी के संक्रमण का प्रसार संक्रमित व्यक्ति से दूषित रक्त हस्तांतरण के माध्यम से फैलता है। नशीली दवाओं के इंजेक्शन और सुइयों के आदान-प्रदान, असुरक्षित ढंग से कान छिदवाने या गोदना गुदवाने, असुरक्षित यौन संबंधों, शेविंग रेजर, नेल कटर इत्यादि को साझा करने से यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। गर्भवती महिला से नवजात शिशु में भी इसका संक्रमण हो सकता है। अधिकांश लोगों में हेपेटाइटिस बी या सी का संक्रमण प्रारम्भिक अवस्था में बिना लक्षणों के होता है। इसलिए इसकी पहचान देर से होती है। बीमारी का देर से पता चलने के कारण यकृत को गंभीर क्षति पहुँच जाती है और लिवर-फेलियर की जटिलताएं पैदा हो चुकी होती हैं।
प्रारंभिक अवस्था में हेपेटाइटिस सी का पता चलने पर तीन से छह महीने की दवाई से इसका इलाज किया जा सकता है। हेपेटाइटिस बी वायरस का संक्रमण पूरी तरह से ठीक नहीं होता है, लेकिन दवाओं के प्रयोग से इसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है। इससे अधिकांश रोगी अपने जीवनकाल के दौरान स्वस्थ रहते हैं। हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए अब सभी शिशुओं और उच्च जोखिम वाले वयस्कों का टीकाकरण किया जाता है। इन्हें हेपेटाइटिस से बचाने के लिए टीकाकरण अवश्य कराना चाहिए। जब तक संक्रमण का निदान, निगरानी और उपचार नहीं किया जाता है, तब तक कई लोगों को अंततः गंभीर जानलेवा जिगर की बीमारी हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हेपेटाइटिस संबंधी जागरूकता लाने और इसकी पहचान व इलाज के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए हर साल 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाने की शुरूआत की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्ष 2030 तक वायरल हेपेटाइटिस को खत्म करने के लिए सक्रिय अभियान चला रहा है। हेपेटाइटिस पर नियंत्रण और रोकथाम के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2018 से राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अंतर्गत हेपेटाइटिस संक्रमण से होने वाली बीमारियों की निःशुल्क जांच और इलाज किया जाता है।
हेपेटाइटिस-बी से बचाव का टीका किसे लगवाना चाहिए..?
ऐसे सभी बच्चे और किशोर जो 18 वर्ष से कम उम्र के हैं और जिन्होंने पहले इसका टीका नहीं लगवाया है, उन्हें हेपेटाइटिस-बी का टीका लगवाना चाहिए।
ऐसे लोग जिन्हें अक्सर रक्त या रक्त उत्पादों की जरूरत होती है, डायलिसिस वाले मरीजों, ठोस अंग प्रत्यारोपण के प्राप्तकर्ताओं और जेलों में बंद कैदियों को इसका इंजेक्शन जरूर लगवाना चाहिए।
स्वास्थ्य कार्यकर्ता और ऐसे अन्य लोग जो अपने काम के दौरान रक्त और रक्त उत्पादों के संपर्क में आ सकते हैं, उन्हें भी हेपेटाइटिस-बी का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।