दुनियाभर में कई ऐसी विश्व विरासत या धरोहरें हैं जो वक्त के साथ जर्जर होती जा रही हैं। इन विरासतों के स्वर्णिम इतिहास और इनके निर्माण को बचाए रखने के लिए विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है।
सालों पहले हुए निर्माण वक्त के साथ जर्जर होने लगते हैं। ऐसे में जरूरी है कि वह अपनी निर्मित स्थिति में बने रहें और उनकी जर्जर होती अवस्था को सुधारकर सालों साल उसी स्थिति में बरकरार रखा जाए। इसलिए विश्व धरोहर दिवस मनाकर इस उद्देश्य को बरकरार रखा जाता है। आज का दिन हर उस देश के लिए खास है जो अपनी संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहरों, यूनिक निर्माण शैली, इमारतों और स्मारकों की खूबसूरती को बरकरार रखना चाहता है और आने वाली हर पीढ़ी को इनके महत्व के बारे में बताना चाहता है।
विश्व धरोहर दिवस आज
विश्व धरोहर दिवस को विश्व विरासत दिवस भी कहते हैं। हर साल 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। इसे शुरुआत में विश्व स्मारक दिवस के तौर पर मनाया जाता था। बाद मे यूनेस्को ने इस दिन को विश्व विरासत दिवस या धरोहर दिवस के रूप में बदल दिया।
विश्व धरोहर दिवस का इतिहास
1968 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन ने दुनिया भर की प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की सुरक्षा का प्रस्ताव पहली बार प्रस्तुत किया था, जिसे स्टॉकहोम में आयोजित हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पारित कर दिया गया। बाद में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर की स्थापना हुई। उस समय 18 अप्रैल 1978 में विश्व स्मारक दिवस के तौर पर इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई। उस दौरान विश्व में कुल 12 स्थलों को ही विश्व स्मारक स्थलों की सूची में शामिल किया गया था। बाद में 18 अप्रैल 1982 को ट्यूनीशिया में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोनुमेंट्स एंड साइट्स’ ने सबसे पहले विश्व धरोहर दिवस मनाया। उसके एक साल बाद 1983 नवंबर माह में यूनेस्को ने स्मारक दिवस को ‘विश्व विरासत दिवस’ के तौर पर मनाने की घोषणा की।
विश्व धरोहर दिवस का महत्व
करें विश्व धरोहर दिवस के महत्व की तो हर देश का अपने अतीत और उस अतीत से जुड़ी कई सारी गौरव गाथा है। इन गौरव गाथा की कहानी बयां करती हैं वहां स्थित तात्कालिक समय के स्मारक और धरोहरें। युद्ध, महापुरुष, हार-जीत, कला, संस्कृति आदि को इतिहास के पन्नों पर दर्ज करने के साथ ही उनके सबूत के तौर पर इन स्थलों को सदैव जीवित रहना जरूरी है।