बाल दिवस विशेष बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा

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आज भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्म दिन है और इस दिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है .बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं . उनका बेहतर शारीरिक और मानसिक विकास ज़रूरी है .बच्चों के बेतर विकास के लिए घर का ,स्कूल का वातावरण भी बेहतर होना चाहिए .

बच्चों को शिक्षा नि:शुल्क मुहैया हो . यही नहीं भारत सरकार ने स्कूल आने वाले बच्चों के लिए 15 अगस्त 1995 को केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में प्रारंभिक शिक्षा के स्तर पर राष्ट्रीय पौषणिक सहायता कार्यक्रम शुरू किया

भारतीय संसद द्वारा सन् 2009 में बच्चो की शिक्षा के सम्बन्ध में एक विधेयक पारित किया गया था जिसे नाम दिया गया निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक, 2009 ये विधेयक भारत में बच्चों की मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करता है . देश के संविधान के अनुच्छेद 21में 6 से 14 बर्ष तक के बच्चों के लिये अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गयी है तथा 86 वें संशोधन द्वारा 21 (क) में प्राथमिक शिक्षा को समस्त नागरिको का मूलाधिकार बनाया गया है . 1 अप्रैल 2010 को जम्मू -कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में इस विधयेक को लागु किया गया था .

दिव्यांग बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा की आयु सीमा बढ़ाकर 18 वर्ष की गई है। ये सम्बंधित राज्य और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी होगी कि

इस विधेयक के अनुसार 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी एवं निजी स्कूलों को अपने संस्थान में 6 से 14 साल की आयु के 25 प्रतिशत ग़रीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देनी होगी . निजी स्कूल यदि ऐसे बच्चों से किसी तरह का अध्यापन शुल्क वसूलते हैं तो वो उनको इसके बदले दस गुना जुर्माना देना होगा .

विधेयक के प्रावधान की शर्त नहीं मानने पर सम्बंधित निजी स्कूल की मान्यता रद्द हो सकती है और मान्यता रद्द होने पर भी स्कूल का संचालन किया गया तो आर्थिक दंड की राशि एक लाख रूपए देनी होगी और उसके बाद रोज़ाना की दर से 10 हजार रूपए का अर्थ दंड भरना होगा .

गया इसके पीछे सोच यही थी कि स्कूल आने वाले अधिकांश बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जहाँ बच्चों को सुबह का नाश्ता या खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता . जिन बच्चों को सुबह खान मिल भी जाता है उन्हें भी दोपहर तक भूख लग जाती है और वो अपना ध्यान पढाई पर केंद्रित नहीं कर पाते हैं।

मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए ” पूरक पोषण ” का कार्य करता है। छत्तीसगढ़ के स्कूलों में भी मध्याह्न भोजन उपलब्ध करवाना छत्तीसगढ़ सरकार का एक बहुआयामी कार्यक्रम है इसका मूल उद्देश्य प्राथमिक, उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को गर्म पका पकाया भोजन उपलब्ध कराना है।

  • इस योजना का दूसरा उद्देश्य बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार लाना, गरीब बच्चों को प्रोत्साहित करना, नियमित रूप से स्कूल जाने, कक्षा की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने, नामांकन को बढ़ावा देना है।
  • अनेक बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जो बहुत ग़रीब हैं और जिनके लिए दो जून के भोजन का प्रबंध कर पाना किसी चुनौती से कम नहीं है .
  • जिन परिवारों की प्राथमिकता किसी तरह पेट भरने की हो उनके लिए भोजन की पौष्टिकता पर विचार करना कोई ख़ास मायने नहीं रखता . ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए स्कूलों में मिलने वाला मध्यान्ह भोजन पेट भरने का बहुत बड़ा सहारा है और ये एक तरह का प्रोत्साहन भी है जिसके आकर्षण में बच्चे स्कूल आ जाते हैं .
  • यही नहीं मध्यान्ह भोजन के लिए निर्देशित गुणवता के कारण इन बच्चों को शरीर के विकास के लिए आवश्यक पोषण मिलता है .
  • केंद्र और राज्य स्तर पर तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी बच्चों की एक बड़ी संख्या स्कूलों का मुंह नहीं देख पाती है . अनगिनत बच्चे , बचपन के आनंद और बेफिक्री से वंचित हैं . छोटी सी उम्र में घर की आर्थिक जिम्मेदारियां संभालने के लिए वो कहीं कोई छोटा मोटा काम करते हैं .

हालाँकि देश में बाल मज़दूरी पर निषेध है और इसके लिए कड़े क़ानूनी प्रावधान हैं बावजूद इसके जाने अनजाने बच्चे बाल मज़दूरी करते हुए शोषण का शिकार होते हैं .

बाल मजदूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के किसी बच्चे को किसी कारख़ाने या खान में अथवा अन्य किसी जोखिमपूर्ण रोजगार के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता । बच्चों से बाल श्रमिक के रूप में कार्य लेना अब एक संगेय अपराध है और इसके लिए 2 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है .

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