
कहीं बादल फट रहे हैं ,कहीं भूस्खलन हो रहा है और कहीं भीषण बाढ़ ने क़यामत ढा रखी है .प्रकृति के इस विनाशकारी रूप के पीछे मनुष्य का लालच , प्रकृति का निर्मम दोहन , जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पहाड़ों की विवेकहीन खुदाई है . प्रकृति विरोध नहीं करती लेकिन एक दिन ऐसी विनाशलीला करती है जिसके आगे हम स्वयं को असहाय अनुभव करते हैं .
मनुष्य ने पर्यावरण को बहुत नुक्सान पहुंचाया है इसके चलते पूरी दुनिया में मौसम के चक्र पर बहुत बुरा असर पड़ा है यूरोप , अमेरिका के अनेक हिस्से जहाँ कभी बहुत ठण्ड हुआ करती थी आज भीषण गर्मी और लू की चपेट में हैं .
अति वृष्टि , अति बाढ़ और भूस्खलन के कारण दुनिया भर में जान-ओ-माल का हर बरस बहुत नुक्सान होता है .प्रकृति की विनाशलीला उसकी नाराज़गी की द्योतक है .

अनेक नदियाँ उफान पर हैं और ख़तरे के निशान को कई बार पार कर चुकी हैं . उनके किनारे अतिक्रमण का शिकार हुए पड़े हैं . हम नदियों को माता कहकर पूजते हैं लेकिन उनको प्रदूषित करने से भी पीछे नहीं रहते मनुष्य को सिर्फ अपने जीवन की , अपने अस्तित्व कि चिंता है जबकि ये धरती मनुष्य के अलावा भी अनगिनत जीवों का घर है . सच तो ये है इस धरती को जितना ख़तरा मनुष्य से है उतना किसी और से नहीं .

मनुष्य ने पहाड़ों , समुद्रों , नदियों और झीलों किसी को नहीं बक्शा है . उसने प्रकृति को बर्बर तरीक़े से लूटा है जिसके चलते हमारा पारिस्थितिकी तंत्र लड़खड़ा गया है .जंगल बोलता नहीं , जंगल के असहाय मूक जानवर भी शिकायत नहीं करते वो तो बस प्रतीक्षा में हैं कि एक दिन मनुष्य उनकी और जंगल की एहमियत को समझेगा और अपने आचरण में सुधार लाएगा .जंगल में एक पेड़ कटता है तो भोजन की एक पूरी श्रृखला समाप्त हो जाती है और यही नहीं कीट पतंगों , पशु–पक्षियों की अनेक प्रजातियों का अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ जाता है .

हम अगर अभी भी न संभले तो आने वाला समय हमारे अस्तित्व के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है .हमारे पास इस अनंत ब्रहमांड में एक ही धरती है और धरती बची रहेगी तो बचे रहेंगे हम .