सोशल मिडिया द्वारा पांव पसारने के पहले दुनिया भर में संदेशों के आदान-प्रदान का माध्यम थीं चिट्ठियां . टेलीफ़ोन की सुविधा के बावजूद चिट्ठियां लोगों का मनपसंद माध्यम थीं . चिट्ठियों का प्रचलन तो अब भी है लेकिन पहले जैसा नहीं है . भारत में चिट्ठियां पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्र के अलावा किसी कागज़ पर मजमून लिख कर लिफ़ाफ़े में बंद कर भेजी जाती रहीं हैं .
डाक विभाग के ज़रिये ही प्रियजनों तक धनादेश या मनिऑर्डर भेजा जाता था . बहुत जल्दी ज़रूरी संदेशों को संक्षिप्त में भेजने का माध्यम था टेलीग्राम . भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में भी टेलीफ़ोन और डाक सेवा की विधिवत शुरुआत के पहले भी ,धावकों ,घुड़सवारों , विशेष दूतों और हरकारों के अलावा पालतू और प्रशिक्षित कबूतरों और बाज़ों के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता था . दुनिया भर में मशहूर मैराथन दौड़ की शुरुआत के पीछे भी विजय का एक सन्देश पहुँचाने की घटना मानी जाती है.
कहा जाता है कि भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में कबूतरों की सहायता से सन्देश भेजे जाते थे .1207 में क़ुतुबबुद्दीन ऐबक के दौर में सन्देश वाहकों की विशेष व्यवस्था थी . अलाउद्दीन खिलजी ने भी 1296 में इस व्यवस्था को और परिष्कृत किया . दुनिया भर में आज हर देश की एक सुचारू डाक सेवा है .
9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस मानाने के पीछे यही वजह है कि इसी दिन यानी 9 अक्टूबर 1874 को ’’यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’’ के गठन हेतु बर्न, स्विटजरलैण्ड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे .
भारत , यूनीवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना 1 जुलाई, 1876 को .
ईस्ट इंडिया कंपनी के वायसराय लार्ड क्लाइव ने 1766 मे देश की पहली डाक व्यवस्था स्थापित की थी और भारत में इसकी विधिवत शुरुआत हुई 1774 में
जब वारेन हेस्टिंग्स ने पोस्टमास्टर जनरल के अधीन कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता )जीपीओ की नींव रखी . तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी में 1786 में और बंबई (वर्तमान में मुंबई ) प्रेसिडेंसी में 1793 में जनरल पोस्ट ऑफ़िस खोले गए और फिर तीनों प्रेसिडेंसियों को 1837 के अखिल भारतीय डाक सेवा अधिनियम द्वारा एक कर दिया गया .
इस समय हमारे देश में 156,721 डाकघरों की विशाल संख्या है और ये डाक तंत्र ,विश्व में सबसे बड़ा है .
भारत में तीन-चौथाई से भी अधिक डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हैं। भारत में डाक सेवा जब विधिवत शुरू हो गयी तो उस समय भी ऐसे कई राज्य थे जिनके अपने स्वतंत्र डाक संगठन थे और वो अपने डाक टिकट स्वयं जारी करते थे इन राज्यों के लैटर बॉक्स हरे रंग में रंगे होते थे ताकि वो देश की मुख्य डाक सेवा के लाल लैटर बक्सों से अलग नज़र आएं ।
शुरूआती दिनों में डाकघर विभाग, डाक बंगलों और सरायों के रख रखाव का काम भी करता था। कोई भी यात्री एक निश्चित राशि देकर डाक विभाग की सेवा में लगी पालकी, नाव, घोड़े, घोड़ागाड़ी और डाक ले जाने वाली गाड़ी में यात्रा कर सकता था और रास्ते में पड़ने वाली डाक चौकियों में विश्राम कर सकता था इन्हीं डाक चौकियों के ठिकाने बाद में डाक बंगले कहलाये . पुराने ज़माने में हरेक डाकिए को , साथ चलने के लिए एक ढोलची मिलता था जो जंगली रास्तों और बीहड़ों से गुजरते समय जंगली जानवरों को दूर भगाने और लोगों को अगाह करने के लिए ढोल बजाय करता था . इसी तरह रात के समय डाकिए और डाक सामग्री की सुरक्षा के लिए दो मशालची और दो तीरंदाज़ भी डाकिये के साथ चलते थे .
भारत में मनी ऑर्डर सिस्टम यानी धनादेश व्यवस्था की शुरूआत 1880 में हुई .भारत में प्रथम बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरुआत हुई
सन 1852 में और पहला डाक टिकट था महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला डाक टिकट .18 फ़रवरी 1911 को भारत में शुरुआत हुई डाक सेवा की जो विश्व की भी पहली हवाई डाक सेवा बनी . दुनिया में डाक का हवाई परिवहन पहली बार इलाहबाद और नैनी के बीच किया गया था . भारत से बाहर भारतीय डाक सेवा का डाकघर 1983 में अन्टार्क्टिका के दक्षिण गंगोत्री में स्थापित किया गया था .
15 अगस्त 19 72 में आरंभ की गयी थी 6 अंको की पिनकोड सेवा .कालांतर में डाक सेवा में विकास और विस्तार के अनेक स्वर्णिम अध्याय जुड़ते चले गए . अब दौर स्पीड पोस्ट और इ-पोस्ट का है . भारतीय डाक विभाग अपनी स्थापना से लेकर अब तक देश को अपनी महत्वपूर्ण और उपयोगी सेवाएँ प्रदान कर रहा है .कई पीढ़ियों की स्मृतियों का हिस्सा है भारतीय डाक सेवा .