
नई सरकार के साए में भारत के भविष्य पर भारत की कुण्डली की संक्षिप्त विवेचना –
(1) मेरी जानकारी में भारत वर्ष की कुण्डली वृषभ लग्न, कर्क राशि की है।
(2) इसके जन्म के समय सिद्धि योग (अच्छा योग), पुष्य नक्षत्र था। नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है। जो कर्म प्रधान है।अभी के प्र.मं भी कर्म प्रधान है।
(3) वृषभ लग्न कुंडली में शनि हमेशा प्रबल योग कारक ग्रह होता है। क्योंकि वह त्रिकोणेश और पापी केन्द्रेश ,दोनों होता है।

(4) जन्म के समय तृतीय भाव भाव में पंच ग्रही योग बना था।इसे अच्छा नहीं माना जाता है। ये योग जिस भाव में भी बनता है। उस भाव में कमी लाता है। तृतीय भाव जो पराक्रम और छोटे भाई-बहनों का होता है। इसलिए भारत के जन्म होते ही एक भाई ‘पाकिस्तान’ के रूप में भारत से विघटित हो गया।

(5) पर अब भारत की चंद्र कुंडली (कर्क राशि वाली ) देखें तो अभी गोचर में शनि, अष्टम भाव में स्वराशि का होकर पूर्ण दृष्टि से कुटुम्ब भाव ( द्वितीय भाव) को देखकर कर कुटुम्ब में वृद्धि कर रहा है। गुरु आय भाव (11वें भाव,बड़े भाई का भाव) में बैठक तृतीय भाव को पूर्ण दृष्टि से देखकर पराक्रम और छोटे भाई को मिलाकर क्षेत्र में वृद्धि कर रहा है । यही नहीं चीन के भी विघटन के आसार बन रहे हैं। यदि विघटन नहीं भी हुआ तो चीन में गृह युद्ध अवश्य होगा।

(6) कर्क राशि वाली कुण्डली में गुरू की पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव पर भी है। सप्तम भाव जीवन साथी के अलावा स्वास्थ्य परिवर्तन,कैरियर परिवर्तन, संतान संबंधी परिवर्तन, कर्म भाव और उद्यम परिवर्तन और भौतिक अवस्था में परिवर्तन का है। चूंकि एक सबसे बड़े और शुभ ग्रह गुरू की दृष्टि यहां पर है। तो तय है ये सारे परिवर्तन अत्यंत शुभ संकेत दे रहे हैं। यानी आगामी वर्ष भारत की चौतरफ उन्नति का इतिहास लिखेंगे।
