3 मई सन 1999 को पाकिस्तान ने भारत पर कारगिल का युद्ध थोपा था जब पकिस्तान के 5 हज़ार सैनिकों नें कारगिल की ऊँची पहाड़ियों पर घुसपैठ कर क़ब्ज़ा जमा लिया था। भारत सरकार ने इस अचानक शुरू किये गए युद्ध में पाक फ़ौज के आक्रमण का जवाब देने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया था
पकिस्तान की फ़ौज द्वारा बंदी बनाये गए इन सैनिकों में 23 साल के कैप्टन सौरभ कालिया भी शामिल थे बंदी बांये गए सभी भारतीय सैनिकों को पाकिस्तानी फ़ौज ने क़ैद में रख कर भीषण यातनाएँ दीं प्रताड़ना के समय इनके कानों में गर्म लोहे की छड़ डाली गयी ,आँखें फोड़ दी गईं , हड्डियाँ तोड़ दी गयीं और निजी अंग काट दिए गए।
9 मई को पाकिस्तानी फ़ौज हमले में कारगिल में मौजूद भारतीय सेना का गोला बारूद का भण्डार नष्ट हो गया .10 मई को पहली बार लदाख के प्रवेश द्वार यानी द्रास, काकसार और मुश्कोह सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा गया
भारतीय सेना हालात पर नज़र रखे हुए थी और 26 मई को भारतीय सेना को जवाबी कार्यवाही का आदेश दिया गया . भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए अपने मिग-27 और मिग-29 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया। मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया कारगिल युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया और इस दौरान क़रीब दो लाख पचास हज़ार गोले दागे गए। वहीं 5,000 बम फ़ायर करने के लिए 300 से ज़्यादा मोर्टार, तोपों और रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया।
मई से जुलाई तक क़रीब दो महीने तक चले कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के सिपाहियों ने अतुलनीय शौर्य और पराक्रम का परिचय दिया .क़ रीब 18 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर लड़े गए इस युद्ध में भारत के 527 से ज़्यादा सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की 1300 से ज़्यादा सैनिक इस युद्ध में घायल हुए . युद्ध में पाकिस्तान के 2700 सैनिक मारे गए थे .
जुलाई 1999 को कारगिल के इस युद्ध में शहीद होने वाले कैप्टन मनोज पांडे की उम्र उस समय मात्र 25 साल थी..इस युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया ने अपने प्राणों की बलि दी . शेरशाह के नाम से मशहूर कैप्टन बत्रा ने भी अतुलनीय शौर्य का परिचय देते हुए 7 जुलाई 1999 को कारगिल में प्वॉइंट 4875 को पाकिस्तान के क़ब्ज़े से आज़ाद कराया था .
कैप्टन विक्रम बत्रा ने और पाकिस्तान ने उन्हें ‘शेरशाह’ कोडनेम दिया था। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन बत्रा हमेशा एक पंक्ति दोहराते थे “ये दिल मांगे मोर” उन्होंने इस युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए शहादत हासिल की
उनके महान बलिदान को सम्मान देते हुए उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया . छुट्टियों में घर आने पर विक्रम बत्रा ने कहा था “या तो मैं तिरंगा फहराकर आऊंगा, या उसमें लिपटा हुआ आऊंगा, लेकिन मैं वापस ज़रूर आऊंगा।”
कैप्टन अनुज नायर 24 साल की उम्र में शहीद हो गए थे, उन्होंने मश्कोह घाटी की पिंपल 2 को जीतने में बड़ी भूमिका निभाई थी और मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैप्टन अनुज नायर 24 साल की उम्र में शहीद हो गए थे, उन्होंने मश्कोह घाटी की पिंपल 2 को जीतने में बड़ी भूमिका निभाई थी और मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
6 जून 1999 को कैप्टन हनीफ़ुद्दीन शहीद हो गए थे और मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कारगिल युद्ध में वीरता की मिसाल पेश करने वाले अन्य प्रसिद्ध नाम हैं ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (परमवीर चक्र) , कैप्टन मनोज कुमार पांडे (परमवीर चक्र, मरणोपरांत) (1/11 गोरखा राइफल्स) (18 ग्रेनेडियर्स) , लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (महावीर चक्र) (18 ग्रेनेडियर्स) , मेजर राजेश सिंह अधिकारी (महावीर चक्र, मरणोपरांत) (18 ग्रेनेडियर्स), 6. राइफलमैन संजय कुमार (परमवीर चक्र ,13 जम्मू एंड कश्मीर रायफ़ल्स ) , मेजर विवेक गुप्ता (महावीर चक्र, मरणोपरांत ,2 राजपुताना राइफल्स) , कैप्टन एन केंगुरुसे (महावीर चक्र, मरणोपरांत ,एएससी, 2 राज आरआईएफ़) , लेफ्टिनेंट कीशिंग क्लिफ़ोर्ड नोंग्रम (महावीर चक्र, मरणोपरांत 12 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री ), नायक दिगेंद्र कुमार (महावीर चक्र , 2 राजस्थान रायफ़ल्स )
कारगिल युद्ध के दौरान देश के एक मात्र रेडिओ चैनल विविध भारती सेवा से कारगिल में लड़ रहे फ़ौजी जवानों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए शाम को 4 से 5 बजे तक एक घंटे का विशेष कार्यक्रम रोज़ प्रसारित किया जाता था जिसका नाम था “हैलो कारगिल” कारगिल युद्ध के दौरान ये कार्यक्रम भारतीय फ़ौज के बीच बहुत लोकप्रिय था .