छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जहां हर एक अवसर और कार्यों के लिए विशेष प्रकार के उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग किया जाता रहा है। इस चित्र में पारंपरिक वस्तुओं को एक ही जगह पर दिखाया गया। जो कि छत्तीसगढ़ की प्राचीन धरोहर का हिस्सा है। इनमें –
खुमरी : सिर के लिए छाया प्रदान करने के लिए बांस की पतली पतली टुकड़ों से बनी, गुलाबी रंग से रंगी और कौड़ियों से सजी घेरेदार संरचना खुमरी कहलाती है। यह प्रायः गौ वंश चराने वाले चरवाहा मवेशी चराते समय अपने सिर पर धारण करते है। जिससे धूप और बारिश से राहत मिलती है। पहले चरवाहा कमरा और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे। कमरा जो कि जूट के रेशे से बने ब्लैंकेट नुमा मोटा वस्त्र होता था। जो कि बारिश के समय ओढ़ने से आसानी से पानी अंदर नहीं जाता था। कमरा को रेनकोट की तरह ओढ़ने के काम में लिया जाता था।
कांसी की डोरी : खुमरी के बगल में डोरी का गोलनुमा गुच्छा कांसी पौधे के तने से बनी डोरी है। यह पहले चारपाई या खटिया में उपयोग होने वाले निवार के रूप में प्रयोग किया जाता था। डोरी बनाने की प्रक्रिया को डोरी आंटना कहा जाता है। बरसात के शुरुआती मौसम के बाद जब खेत के मेड़ों में कांसी पौधे उग आते है। तब उसके तने को काटकर डोरी बनाई जाती थी। जो कि चारपाई बनाने के काम आती थी।
झांपी : चित्र के सबसे दाएं तरफ ढक्कन युक्त लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना झाँपी कहलाती है। यह पुराने जमाने में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता था। यह खासकर विवाह के अवसर पर बारात जाने के समय दूल्हे का कपड़ा, श्रृंगार समान, पकवान आदि सामग्रियां रखने का काम आता था। यह बांस की लकड़ी से बनी मजबूत संरचना होती थी, जो कई वर्षों तक आसानी से खराब या नष्ट नहीं होती थी।
काठा : इस चित्र में सबसे बाएं दो गोलनुमा लकड़ी की संरचना दिख रही है, जिसे काठा कहा जाता है। पुराने समय में जब गांवों में धान मापन के लिए तौल कांटा बाट का प्रचलन नही था, तब काठा से धान का मापन किया जाता था। सामान्यतः एक काठा में चार किलो धान आता है। काठा में ही नाप कर पहले मजदूरी के रूप में धान का भुगतान किया जाता था।