विविधताओं से भरे इस देश में सम्मान जो खोया है इसने
हमें उसको वापस लौटाना है,

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बदलेंगे हालात हमारे ये धरा भी मुस्कुराएगी, जन-जन की भाषा हिंदी जब दिल से अपनाई जाएगी। अस्तित्व न खो दे अपना ये हिंदी को हमें बचाना है जी हाँ एशिया के 48 देशों में भारत को छोड़कर अंग्रेजी किसी भी देश की मुख्य भाषा नहीं हैहिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिले तकरीबन 70 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं। अमृत महोत्सव का दौर चल रहा है। अभी हमने स्वतंत्रता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया। जाहिर सी बात है गणतंत्र दिवस भी उसी तर्ज पर मनाया जायेगा लेकिन एक फर्क स्पष्ट रुप से दिखा कि इस बार हर घर तिरंगा अभियान को अनूठी सफलता मिली।

इन अर्थो मे अब भाषाई गुलामी जो अब तक हम पर हावी थी उससे मुक्त होने का अवसर आ चुका है।

अंग्रेजी सुन कर सिकुड़ने की बजाय चौड़े होकर हिन्दी मे जवाब देने का वक्त। यहां अंग्रेजी का विरोध कतई नहीं है। वह भी एक समृद्ध भाषा है और उसका ज्ञान होना अच्छी बात है लेकिन उसे लेकर एक दास्यभाव हमारे मन मस्तिष्क मे मौजूद है उसे उतार फेंकना बेहद जरूरी है। अंग्रेजी के चकाचौंध आकर्षण से बचना बेहद कठिन है पर फिफ्टी नाईन और उनसठ के बीच के फर्क को भी आपका बच्चा जाने यह उससे जादा जरूरी है। आज भी देश के नब्बे फीसदी बच्चे अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। अहिन्दी भाषी राज्यों में मातृभाषा के अलावे यदि हिन्दी भाषा पर भी जोर दिया जाये तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी राष्ट्रभाषा का स्वरूप ले सकती है।

  • हिन्दी का पहला शब्दकोश 1829 मे पादरी आदम द्वारा संकलित हुआ।
  • हकीकत यह है कि एशिया के 48 देशों में भारत को छोड़़ कर अंग्रेजी किसी भी देश की मुख्य भाषा नहीं है
  • योरोप की बात करें तो 43 देशों मे 40 देशों की भाषा अंग्रेजी नहीं है।
  • भोपाल के भाषाविद् डा.आर.एस तोमर के अनुसार 1400 ई. मे मैथ्यू और आस्कट द्वारा अंग्रेजी का पहला शब्दकोश मात्र 10000 शब्दों से संपादित किया गया जो आज बढ़कर सात लाख हो चुकी है।
  • देश को स्वतंत्र हुए पचहतर वर्ष होने जा रहे हैं लेकिन भाषायी मायनों मे आज भी हमारी गुलाम मानसिकता कायम है जबकि भाषा किसी भी देश की संस्कृति की आत्मा होती है।

एक बात धयान से पढियेगा कई उच्चकोटि की अमेरिकन कम्पनियों के सीईओ भारतीय मूल के ही क्यों हैं..? क्योंकि भारतीयों को ही सुगमता से नौकर बनाया जाता है..? कभी भारतीयों ने विचार किया। रशिया, जर्मनी, चीन, कोरिया, फ्रांस, जापान इन देशों को अमरीका अपना गुलाम नहीं बना पाता और ना ही उनके टेलेन्ट को चुरा पाता है… कभी इसका कारण सोचा है?
वो इसलिए क्योंकि इन देशो में उनकी मातृभाषा है… जिसके कारण उन देशो के लोग अंग्रेजी में शिक्षा नहीं लेते, उन्हें अंग्रेजी में विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, कला नहीं आती… इसके कारण कोई भी दूसरा देश उनके लोगों को नौकर बना कर नही ले जा पाता..

आज भारत विश्व का सबसे बड़ा नौकर देश है। अंग्रेजी बोलने वाले नौकरों का देश… पापा, आईबीएम में नौकरी मिल गई, आई एम् प्राउड ऑफ़ यू, माय सन। अंग्रेजी देशो के लिए नौकर तैयार करने वाली दुकान की ओर जाना ना जाना आपका फैसला …

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