जापान के वैज्ञानिकों ने बनाया आंशिक रूप से अपघटित होने वाला प्लास्टिक .

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हाल ही में जापान के वैज्ञानिकों ने एक नए तरह के प्लास्टिक की खोज की है जो परंपरागत और चलन में मौजूद प्लास्टिक की भांति ही मज़बूत और लचीला तो है ही वहीँ आंशिक रूप से अपघटित भी हो सकता है . इससे भविष्य में प्लास्टिक के कचरे को नष्ट करने की संभावनाओं में वृद्धि हुई है . हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिहाज़ से ये एक बहुत उम्मीद भरी ख़बर है . ये एक तरह का चिपकने वाला रेसिन है जिसे विट्रीमर कहा जाता है . ये कम तापमान पर भी अपनी मज़बूती के लिए जाना जाता है .इसकी दूसरी विशेषता ये है कि इसे उच्च ताप पर कई-कई बार नए आकर दिए जा सकते हैं

दुनिया भर में रोज़ाना कई रूपों में इस्तेमाल किया जाता है प्लास्टिक .सबसे पहला सिंथेटिक पॉलीमर 1869 में जॉन वेस्ली हायेट ने तैयार किया था .

दरअसल न्यूयॉर्क की एक फ़र्म ने घोषणा की कि जो कोई भी हाथी दांत के विकल्प के रूप में एक मज़बूत और टिकाऊ पदार्थ की खोज करेगा उसे ईनाम के तौर पर 10 हज़ार डॉलर दिए जायेंगे . असल में उन दिनों बिलीअर्ड के गेम की बढ़ती लोकप्रियता के कारण हाथी दांत से बनी गेंदों का उत्पादन प्रभावित हो रहा था और हाथी दांत के लिए हाथियों को मारा जाता था .

ईनाम की रक़म से प्रेरित होकर जॉन वेस्ली ने दुनिया का पहला सिंथेटिक पॉलीमर बना डाला .

इस उत्पाद को बहुत सराहा गया और इसके प्रचार में कहा गया कि हाथी दांत के इस नए विकल्प से हाथियों का संरक्षण संभव हो पायेगा .

बहरहाल 1907 में बेल्जियम के रहने वाले , पेशे से कैमिस्ट और एक चतुर व्यापारी लिओ बैकलैंड ने खोज की सम्पूर्ण रूप से पहले सिंथेटिक प्लास्टिक बेकलाईट की . द्वितीय विश्व युद्ध के समय प्लास्टिक से बनी चीज़ों के उत्पादन में वृद्धि हुई . 1935 में वॉलेस क्रोथर्स ने सिंथेटिक सिल्क यानी कृत्रिम रेशम के रूप में खोज की नायलोन की जिसका उपयोग विश्व युद्ध के दौरान पैराशूट ,रस्सों , शरीर के कवच , हेलमेट के लाइनर और हवाई जहाज़ों की खिड़कियों के ग्लास के निर्माण में होने लगा .

2004 से इस मात्रा का आधे से अधिक प्लास्टिक उत्पादित किया जा रहा है . 2020 में ये आंकड़ा 40 करोड़ टन तक जा पहुंचा .एक अनुमान के अनुसार 2050 तक प्लास्टिक उत्पादन का आंकड़ा 1.1 अरब टन प्रतिवर्ष हो जाएगा . प्लास्टिक हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है . हमारे समुद्र और नदियाँ प्लास्टिक के कचरे से भरे पड़े हैं . अभी तक यही कहा जा रहा था कि प्लास्टिक का अपघटन नहीं होता क्यों की इनकी रासायनिक संरचना प्राकृतिक अपघटन के व्यवहार की प्रतिरोधी होती है इसलिए प्लास्टिक का कचरा अपशिष्ट के रूप में अनेक वर्षों तक इस धरती पर मौजूद रहेगा .

लेकिन जापानी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित प्लास्टिक के इस नए प्रकार से काफ़ी आशाएं बंधी हैं . प्लास्टिक के कचरे को जलाने पर जो धुआं निकलता है वो बहुत ज़हरीला होता है .

प्लास्टिक की थैलियों में गर्म खाना या गर्म पेय ले जाना स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा है. प्लास्टिक की बेकार थैलियों और अन्य प्रकार के प्लास्टिक के कचरे का ठीक से प्रबंधन न करने पर ,बारिश के मौसम में शहर में पानी का निकास अवरुद्ध हो जाता है और बाढ़ जैसे हालत बन जाते हैं . आवारा पशुओं के लिए प्लास्टिक की थैलियाँ जान लेवा साबित हो रहीं हैं .

यदि हम प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन को लेकर ज़िम्मेदार और सजग न हुए तो आने वाले समय में प्लास्टिक से हमारे पर्यावरण के लिए और अधिक चुनौतियाँ बढ़ जाएँगी .

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